देव ऋषि तपोभूमि (कविता)
माटि मिथि मिथिलापुरी भुवन पावन,
देव ऋषि तपोभूमि महादेवक वाचन,
सदन सदन विराजे भगवती माय ममता,
हिअ उछल पुलकित सब बेराबेरी अओता,
छवि ओछल कानै ते,कतय इ पुष्प उपवन !
हे महादेव अतयसँ अगलो जनम दूर करू नै,
जनम जनम धरि कोख पाबि हे भगवती,
माटि मिथि मिथिलापुरी भुवन पावन,
देव ऋषि तपोभूमि महादेवक वाचन,
हे कुल देवी माय अचरा मे राखू भगवती !
गाछ पात पऽता जतऽ झुकिकेँ देत छाया
तरू लता धान सिस दूरगामी लहरैत राजवि
दुआर खड़ाऽ देव नितु लऽ झोरा समिध के
गोसाउनि सुनि कऽ भोर साँझ पहर उगे रवि
दूभीसँ तुलसी गाछ,
मनुख्ख अहार,गंगा,कमला,फल्गू सोन धरि
प्राकृत आध्यात्म कल जोर नमन वंदन
हे,माटि मिथि मिथिलापुरी भुवन पावन,
देव ऋषि तपोभूमि महादेवक वाचन,
हे कुल देवी माय अचरा मे राखू भगवती !
वर्णाश्रम धरमक हिय बौद्ध स्थल भूमि
काशी मिथिलापुरी देव ध्रुव सनातन आध्य भूमि
अयोध्या श्रीराम सिया मिलनक तिरपित कोढि
हे गौरव तोहे पाहुन आबिते मगध पथसँ पूजैत
बसै हिअ कण कण अंगप्रदेश बज्जि विश्वम्भरा
महाभारत ग्रन्थ हिय राखू तऽ मौन अहलादैत
हे,माटि मिथि मिथिलापुरी भुवन पावन,
देव ऋषि तपोभूमि महादेवक वाचन,
हे कुल देवी माय अचरा मे राखू भगवती !
अहो धन्य भाग्य हमर जनम ऐहि धरती पर
देव ऋषि तपोभूमि महादेवक वाचन,
हे कुल देवी माय अचरा मे राखू आब भगवती !
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मौलिक एवं स्वरचित
© श्रीहर्ष आचार्य