देव अब जो करना निर्माण।
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शृंगार छंद
16मात्रा/आरंभ में त्रिकल, द्विकल फिर त्रिकल अनिवार्य
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देव अब जो करना निर्माण।
पुरुष से नारी हो बलवान।
लौह तन सांकल-सी शक्ति।
अटल हो प्रभंजन अभिव्यक्ति।
शख्त मन हो बाहें पाषाण ।
पुरुष से नारी हो बलवान।
प्रखर ऊर्जा शौर्य भरपूर ।
देख दानव हो जाये दूर।
काँप जाये सारे हैवान।
पुरुष से नारी हो बलवान।
सघन भावना अवयव कराल।
सूर्य-सा हो नैनों में ज्वाल।
पाँव रखते टूटे चट्टान।
पुरुष से नारी हो बलवान।
भैरवी,कालिका,रुद्र रूप।
बनाना महाकाल-सा भूप।
तीक्ष्ण दो दिव्य दृष्टि वरदान।
पुरुष से नारी हो बलवान।
करो हर शस्त्रों से श्रृंगार।
शक्ति दुर्गा करना अवतार।
दुष्ट पापी का हो अवसान।
पुरुष से नारी हो बलवान।
-लक्ष्मी सिंह
नई दिल्ली
नई दिल्ली