देवी शक्ति(संस्मरण)नास्तिक स आस्तिक
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बात 1978 के थिक।दिवाली दिन छलै,भारत और पाकिस्तान के बीच क्रिकेट टेस्ट मैच मे भारत हारि गेल छल,पिताजी मोतिहारी मे पदस्थापित छला।पिताजी स्वयं नीक स्पोर्टस मैंन छला मोहन बगान और मोहन स्पोर्टिंग कल्व के निबंधित खिलाड़ी छला,हुनकर प्रिय खेल फुटबाल छल,मुदा आनो खेल नीक खेलाइत छला तथा क्रिकेट, बैडमिंटन,वालीबाल,शतरंज,ब्रीज,रम्मी।
ओहि दिन पिता जी ज्वर ग्रसित छला मैच खत्म भेला पर कहला जे मधुर ल आन आ भगवती के उसरैग दहुन,मॉ सभ गाम में छलि हम दूनू आदमी रहि,हम घोर नास्तिक छलौं। मुदा पिता माता केआज्ञाकारी अनिच्छे पिता जी के आदेश पर दस रूपया के क्रीम चप मधुर,चारि आने दैत छलै,चालिस टा अनने रहि कारण हमर मित्रवर्गादि सभ अवितथि।
दिवाली मे ठंडा पड़ लागैत छै ताहि मे संध्या काल नेहेनाई एक टा नास्तिक क लेल सभ स दुष्कर काज छल ताहि पर स धोती पहिर के पूजा केनाई।खैर ओ त करवा के छल उपायों नहि छल।पूजा लेल बैसलौ देखैत देखैत या कहू संस्कार वश मधुर राखि ओहि पर तीरा फूल तुलसी दल राखि धूपबत्ती और दीप जरा मंत्र पढलौ
” हे सुनु आहॉ के छी, की छी,नहि छी जे छी हम नहि जानि,पिता जी के आदेश अछि भोग लगा रहल छी,अपन खा लिय” से कहिए उसरैग देलियैन्ह “इदं आचमनियम्” नहि करेलियैन्ह मधुर उठा मिड केस में राखिए देलौ।
तैयार भेलौ घूम लेल।पिताजी कहला जल्दी आविह और संगी सभ के से हो लेने अविह। हम गेलौं कनि काल घूमलौं फिरलौ सभ संगी ओत किछु किछु खाइत सभ के कहलियै चलै लेल त एक्टा कहलक “का करव जा के चाची नैखन ” हम कहलियै “रे बाबूजी कहलें सभनि जना के ले अहिय” .सभ आयल डेरा पर देखलौ जे पिता जी मखान नून दक घी में भुजि क रखने छलाह सभ के प्लेट लगेलौ मधुर पुष्ट स छलेह सभ खा क गेल।भोजन करै लेल गेलौ तो देखै छी पिता जी कचौड़ी तसमै आलू भुजिया बना कर रखने छलाह।पिता के स्नेह देखि हृदय द्रवित भ गेल जे ज्वर ग्रसित छथि तैयो बेटा लेल एतेक मेहनत,मखान भुजनाई, कचौड़ी,तसमै आलू भुजिया बनेला।
खैर भोजन क बाप बेटा एके काम सुतलौं,एत इ कहि दी जे साहित्यानुरागी छलौं तैं शिव तांडव स्तोत्र रटल छल।बिछौना पर जाइते नींद आवि गेल,सपनै लगलौं जाहि विग्रह के हम संध्या काल ओल सन बोल मंत्र स मधुर उसरगने छलौं ओहि स भगवती बहरेली आ कहै छथि जे तू हमरा नहि चिन्है छै तू देख हम के छी आ हमरा बुझैल जे पिता जी पांचम अध्याय पढि रहल छथि,भगवती क रूप बदलिए रहल छैन्ह,जखन भ्रांति रूप भयंकर देखलौ कि सुतले में मुॅह स “जटाट् वी गल्ज्व……”निकल लागल।पिताजी उठा कर पुछलैन्ह की भेल?सभटा कहलियैन्ह त कहला काल्हि गाम चलिए जा परसू भ्रातद्वितीया छै,अंजू ओतै छथि हमरा स जेठ बहिन मॉ के कहियहुन कुमारि खुआ देथिन।ओहि वेर स आई धरि दिवाली संध्या कुमारि भोजन चलिए रहल अछि।
और घोर नास्तिक हम घोर आस्तिक भ गेलौ ।
आशुतोष झा
१८/१०/२०२१