देवी महात्म्य सप्तम अंक 7
7-सप्तमी कालरात्रि-
दिवस सातवां नवराता का , शब्दों में बांध नही सकता।
कालरात्रि कालनिशा का ,वर्णन में छाप नही सकता।
जो भी साधक करें साधना ,मन सहस्त्रार में रहता है।
आठों सिद्दी नवो निधी का ,फल उस साधक को मिलता है।
जागृत कर सहस्त्रार चक्र को ,जब पूरा रम जाता है।
सब सिद्दियों का द्वार उसका फिर खुलने लग जाता है।
कालरात्रि के नाम अनेको , देवी महिमा भारी है ।
काली कपालिनी ,खप्पर वाली , सब सिद्दी देने वारी है।
रुद्राणी चामुंडा चण्डी, मित्यु, भैरवी नाम तेरे।
भद्रकाली ,दुर्गा ,आदि सब ,विध्वंसकारी काम तेरे।
दुष्टों का संहार सभी का ,कालात्री तुम करती हो।
रौद्री और धूमोरना देवी , तुम सबका दुःख हरती हो।
चण्ड मुण्ड को मारा तुमने ,रक्तबीज का रक्त पीया।
धूम्र विलोचन को संहारा ,मधु कैटभ को लील लिया।
भूत प्रेत पिशाच निशाचर , सब ही तुमसे डरते हैं।
जिस जगह हो वास तुम्हारा ,शीघ्र पलायन करते है।
गर्दभ वाहन करो सवारी ,हाथ मे खप्पर अरु खांडा।
तेज चमकती रुण्ड मुण्ड की ,रुधिर मयी उर में माला।
तंत्र मंत्र सब काम करे जब ,तुम प्रसन्न हो जाती हो।
शक्ति आराधना करते है जो, उनके ह्रदय बस जाती हो।
तंत्र साधना करने वाले ,इसी निशा में करते है।
काला कपड़ा बिछा रात में ,मंत्र जाप फिर करते है।
तुमको ध्याने वाला साधक ,जाता जीत अज्ञान से।
भय मुक्त हो जाता है वो ,मृत्यु ओर अंधकार से।
कालरात्रि नाम तुम्हारा ,रंग भी गहरा काला है।
त्रिनेत्र की धारक देवी ,नैनो में जैसे ज्वाला है।
इनके कर में वरमुद्रा है ,ओर मुद्रा इक अभय है।
डरते तुमसे दुष्ट सभी ओर भक्त जन निर्भय है।
जल ज्वाला ओर रात भय ,शत्रुभय नही सताता है।
जो भी शुभंकारी देवी की ,शरण जीव चल जाता है।
रंग तुम्हे है प्रिय बहुत ,वो तो बिल्कुल नीला है।
राहू को जो करें नियंत्रित , यश सामाजिक वाला है।
ओर भोग में तुम्हें प्रिय है , हलुआ जो हो गुण वाला।
या दूध बना मिष्ठान्न कोई ,है प्रसन्न करने वाला।
धर कर ध्यान ह्रदय में इनका ,जो साधक गुणगान करें।
यम नियम संयम मन से , तन सफाई का ध्यान धरे।
उसके सब कलिमल मिटते , निर्भय होकर जीता है।
जिस पर मैया की दया नही हो ,वो नर बिल्कुल रीता है।
नागदौन की महा ओषधि ,देवी इक नाम तुम्हारा है।
मन मष्तिष्क के रोग सभी , मिट जाते वैद्य हमारा है।
नागदौन से सभी रोग मिट जाते है यह पक्का है।
वात पित्त कफ जो भी दूषित ,करती ठीक है सच्चा है।
सब सिद्दी देने वाली ,’मधु ‘, नाम तुम्हारा भजा करें।।
इतनी मधु पर करो कृपा , जाप तुम्हारा किया करें।
कलम घिसाई
9414764891
कोपैराइट
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विशेष
प्रार्थना—-
(ध्यान श्लोक साभार गर्न्थो से)
एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता | लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्तशरीरिणी || वामपादोल्लसल्लोहलताकण्टकभूषणा | वर्धन्मूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयन्करि ||
या देवी सर्वभूतेषु माँ कालरात्रि रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
मंत्र जाप
मां कालरात्रि (मां काली) का बीज मंत्र
ऊं ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै ऊं कालरात्रि दैव्ये नम:
क्रीं क्रीं क्रीं ह्रीं ह्रीं हूं हूं क्रीं क्रीं ह्रीं ह्रीं हूं हूं स्वाहा
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ॐ ऐं ह्रीं क्रीं कालरात्रै नमः |***
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