देवी महात्म्य प्रथम अंक
दुर्गा महात्म्य
प्रथम अंक
???????????
आज सुनाऊँ तुमको गाथा ,धर्म सनातन भारी है।
जिसमें ध्याते देव अनेको ,सबकी महिमा न्यारी है।
पर कलियुग में पाँच देव को , सबसे ज्यादा भजते है।
करें उपासना सभी इनकी ,इन्हें उपास्य कहते है ।
भगवान विष्णु अरु देव अरुण, गौरीसुत श्रीश्री गणेश।
दुर्गा श्रीजगदम्बा माता ,महादेव श्री श्री महेश।
कलियुग में दुर्गा माता का , महत्व गणेश के जैसा है ।
शीघ्र मनोरथ पूरा करते , दोनों का महत्व विशेषा है।
इनमे से भी माँ दुर्गा को ,ईश्वर की शक्ति माना है।
सभी देव करते है जिसको, वो दुर्गा भक्ति माना है।
समय समय पर दुर्गा माँ ने ,अपने बहु अवतार लिये।
भक्त वत्सला मां दुर्गा ने ,असुर बहुत संहार किये।
उनकी एक छोटी सी गाथा ,अल्पमति से लिखता हूँ।
इसमें कोई खोट रहे तो , क्षमा निवेदन करता हूँ।
धर्म सनातन की महिमा भी ,सब धर्मों से न्यारी है।
हर इक पर्व की महत्ता भी , लगती बड़ी ही प्यारी है।
नवरात्री भी उस क्रम में ही ,कुछ अलग महत्व ही रखते है।
भक्त सभी इन नवरातो मे ,शक्ति अराधन करते है।
★★★
प्रथम दिवस में जिस दुर्गा का , ध्यान भक्त जन करते है।
गिरजा, पार्वती , हिमपुत्री ,शैलजा उसको कहते है ।
जो भी प्राणी शैल सुता को प्रेम योग से ध्याता है।
उसकी इच्छा सब पूरी होती , सब फल ही वह पाता है ।
शैल कुमारी शैलसुता का , वाहन वृषभ कहाया है।
वाम हाथ में कमल सुशोभित , दाएं त्रिशूल भाया है।
★★★★
उमा गई जब बिना निमंत्रण, पिता भवन यगशाला में।
शिव शंकर ने मना किया पर, सुना नहीं हिमबाला ने।
जाकर देखा महादेव का ,नाम नही सम्मानों में।
सिवा मात सब को ही शामिल ,पाया इन अपमानों में।
क्रोध किया फिर दक्षसुता ने ,जनक दक्ष को ललकारा।
कूद कुण्ड में हवन पिता का ,सारा ही यज्ञ बिगारा।
सती हुई जब दक्ष सुता तो ,हाहाकार मचा भारी।
महादेव की कोप अनल में ,डरती थी जनता सारी।
यही सती फिर हिम घर जन्मी, शैलकुमारी बनकर के।
वर पाया पति महादेव सा ,भारी तपस्या कर कर के।
जो भजता गिरजा को तब से ,वो तप का पुण्य पाता है।
सिद्दी सब मिल जाती उसको ,अंत धाम शिव जाता है।
प्रथम दिवस में जाग्रत होता,मूलाधार चक्र भक्ति का।
जिसे मानते विद्या कारक,सूत्र सभी ही शक्ति का।
क्रमशः — अगले अंक में
कलम घिसाई
9414764891
*********************************
?आधार श्लोक ?
वन्दे वांछित लाभाय चन्द्रार्द्वकृत शेखराम
वृषारूढ़ा शूलधरां शैलपुत्री यशस्विनीम॥
आधारित छंद —- ताटक।