देवी महात्म्य नवम अंक *9*
★सिध्दिदात्री★
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नवमी का दिन नवराता का, सिध्दिदात्री मैया का।
नंदा पर्वत पर आप विराजो ,सो नंदा नाम भी मैया का।
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सकल सिद्दी का फल मिलता ,जो भी तुमको ध्याता है।
बिन प्रयास के मात्र सोच से, काम सफल हो जाता है।
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चार भुजा त्रिनेत्र धारिणि , चार अस्त्र कर धारित है
एक हाथ में चक्र सुशोभित , एक में शंख विराजत है।
एक हाथ मे गदा अस्त्र है ,एक मे कमल सुशोभित है।
पदम् का आसन प्रिय आपको, सिंह का वाहन राजत है।।
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नाना रत्नों से जड़ा हुआ ,मुकुट सुशोभित है सिर पर।
कंचन की आभा लिये देह ,मृदुल हास्य है लब पर।
आभूषण लगभग सारे ही , धारित हो तुम तन पर।
किंकिणि कुंडल केयूर मयूर ,मुक्ता हार साजे उर पर।
सिद्दी आठो है अधीन ,गरिमा, अणिमा, ईशित्व भी।
महिमा ,लघिया, प्राप्ति ,प्राकाम्य, और वशित्व भी।
सारी सिध्दियां देवी से ही ,पाकर शिव बने महेश्वर ।
इसी वजह से महादेव भी , कहलाये अर्धनारीश्वर।
हे परम् शक्ति हे परमभक्ति ,तू सब जननी की जननी है।
तुझसे ही यह दिवस चले है ,तुझसे ही चलती रजनी है।
नकारात्मक ऊर्जा का द्योतक ,बैंगनी वर्ण माना जाता।
लेकिन पूजा में तुझे प्रिय है ,सो शुभफल देने लग जाता।
लोहा लोहे को काटे ज्यों, वेसे ही बैंगनी रंग बने।
आसपास की सब निम्न शक्तियां ,इस रंग में ही उच्च बने।
समस्त सिध्दियां देने वाली ,सारा जग तुमको सेवत है।
भुक्त अभुक्त दशाएँ सारी , लगती तुझसे प्रेरित है।
सात्विक भोजन सत आचरण, और सात्विक पहनावा।
कपट रहित परहित जीवन ही ,साधक का तुमको भावा।
अर्थ धर्म और काम मोक्ष ,चारो तेरे अनुचर है।
निर्वाण चक्र को जाग्रत कर ,उठते सिद्दी पाकर है।
आदि अंत्यय और मध्य नाड़ियों ,पर तेरा अधिकार महा।
तेरा वर्णन तेरी महिमा ,कैसे शब्दो मे जाये कहा।
हे भक्त कष्ट निवारिणी ,भव सागर से तारिणी।
करो कृपा जगत पर ,सब बाधा बन्धन हारिणी।
विश्वकर्ती, विश्वभर्ती हो , विश्वहर्ती, विश्वप्रीता भी।
नमन योग्य तुम विश्व वार्चिता, सिध्दिदात्री विश्वातीता भी।
मन्दमति मधु क्या बोले , क्या तेरा गुणगान करें।
ओर छोर ही नही तुम्हारा , कैसे। तेरा ध्यान। धरें।
पूजा जानू ना आवाहन , ओर विसर्जन कैसे हो।
क्षमा मांगता सब विधि तुझसे, बस चाहूँ दर्शन जैसे हो।
कलम घिसाई
मधुसूदन गौतम
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विशेष– ध्यान मंत्र
वन्दे वांछित मनोरथार्थ चन्द्रार्घकृत शेखराम्।
कमलस्थितां चतुर्भुजा सिद्धीदात्री यशस्वनीम्॥
स्वर्णावर्णा निर्वाणचक्रस्थितां नवम् दुर्गा त्रिनेत्राम्।
शख, चक्र, गदा, पदम, धरां सिद्धीदात्री भजेम्॥
पटाम्बर, परिधानां मृदुहास्या नानालंकार भूषिताम्।
मंजीर, हार, केयूर, किंकिणि रत्नकुण्डल मण्डिताम्॥
प्रफुल्ल वदना पल्लवाधरां कातं कपोला पीनपयोधराम्।
कमनीयां लावण्यां श्रीणकटि निम्ननाभि नितम्बनीम्॥