देवी स्तुति द्वितीय अंक * 2*
दुर्गा महात्म्य अंक 2
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नवराता का दिवस दूसरा ,माता ब्रह्म स्वरूपा है।
ब्रह्मचारिणी ,और अपर्णा ,उमा नाम सतरूपा है।
ब्रह्म नाम है एक तपस्या , जिसका आचरण भारी है।
तपस्विनी का किया आचरण , तब बनी ब्रह्कुमारी है।
शंकर को पति बनाने में, बहुत तपस्या मन लाई।
शैल कुमारी तप के बल पर ,ब्रह्मचारिणी बन पाई
एक हाथ जपमाला लेकर , दूजे हाथ कमंडल है।
स्वेत वसन की धारिणि देवी , तेज तुम्हारा मंडल है।
पैदल चलकर भोजन तजकर, पल्लववर्ण बना डाला।
हरा तुम्हारा रंग प्रिय है , आभूषण पुष्पिल माला।
हरा वर्ण है प्रेमामय जो ,जीवन प्रेम बढ़ाता है।
ब्रह्म आचरण करने वाला ,प्रेममयी निधि पाता है।
विद्या को चाहने वाला जब ,मन से तुमको ध्याता है।
सहज भाव से सरल विधि से , इच्छित सिद्दी पाता है।
पूजा में तेरे जो साधक ,सुगन्धित पुष्प चढ़ाता है।
सहज भाव से कमल चढ़ाकर, भी तुमको पा जाता है।
वर्ण गौर है माता तेरा , स्वाधिष्ठान में स्तिथ हो।
ब्रह्मचर्य का पालन करती ,शुभकर्मी व्यवस्तिथ हो।
पयोधर कमनीय तुम्हारे, नाभि निम्न नितम्बा है।
कांत पीन कपोल तुम्हारे , सुमेरमुखी जगदम्बा है।
परम वंदनीय अधर पल्लवी ,बिखरी खुली केशमाला।
त्रिनेत्रमयी है दृष्टि माते ,स्निग्धचंद्र सा लिए उजाला।
सब भूतों में श्रेष्ठ हे दुर्गे , ब्रह्चारिणी नाम है।
अल्प मति से करता तुमको, मधु बारम्बार प्रणाम है।
क्रमशः —
कलम घिसाई
9414764891
विशेष —
1. या देवी सर्वभूतेषु माँ ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
2. दधाना कर पद्माभ्याम अक्षमाला कमण्डलू।
देवी प्रसीदतु मई ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा।।
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