देवव्रत से भीष्म पितामह तक।
शांतनु के लाडले, हस्तिनापुर के राजकुमार।
मां गंगा के पुत्र हैं यह, मां इनकी प्रेरणा का आधार।
गंगा के चले जाने से, शांतनु रह ग्ए थे अकेले,
अकेला पन वह सही नही पाते थे, और घुम्ने निकल जाते थे।
एक दिन यह अवसर आया, सत्यवती को उन्होंने वहां पर पाया।
सत्यवती पर मुग्ध हो गये, अपनी सुध बुध वह को गये ।
अब वह दिन प्रतिदिन व्याकुल रहने लगे,
एक दिन उन्होंने यह ठान लिया, सत्यवती से यह कह दिया।
मैं तुम्हें पाना चाहता हूं, तुम मुझसे विवाह करो मैं यह चाहता हूं।
सत्यवती ने अपने पिता से मिलवाया, एवं सारा हाल उन्हें बताया।
सत्यवती के पिता ने एक शर्त सुनादी, मेरी पुत्री के पुत्र हों गद्दी के अधिकारी।
शांतनु को यह नहीं सुहाया, और वह लौटकर घर आया।
सत्यवती की चाह में डिगने लगे, वह निढाल होकर रहने लगे,
अपनी समस्या को किससे कहें, अपनी व्यथा को कैसे कहें।
देवव्रत उन्हें उदास देखता रहा, पिता की उदासी से मचलने लगा।
तभी उसे यह पता चला, सत्यवती के पिता ने यह सब कहा ।
अब उसने पिता के लिए, यह ठान लिया।
सत्यवती के पिता को यह वचन दिया।
सत्यवती के पुत्र को ही राज पाट मिलेगा ।
देवव्रत यह प्रण करेगा, अपने इस जीवन में वह नहीं विवाह करेगा।
इस प्रण प्रतिज्ञा ने उसे भीष्म बनाया,
हर किसी ने इस प्रतिज्ञा को भीषण बताया।
और इसे भीषण बना दिया,उन हालातों ने भी,
जो घटित होने लगी थी,।
सत्यवती के पुत्र ज्यादा नहीं बच पाए,
भोग विलास में जुटे हुए रहे थे, शीघ्र ही रोग ग्रस्त हो गये।
और इसी कारण वह बच नहीं पाए।
हस्तिनापुर ने अपने राज कुमार गवांए।
अब हस्तिनापुर दो राहें पर खड़ा हुआ था,
क्यो कि इन राज कुमारो को कोई पुत्र नहीं हुआ था।
अब माता सत्यवती ने देवव्रत से यह कहा,
तुम्हें करना पड़ेगा विवाह,
तभी हस्तिनापुर को युवराज मिलेगा ।
देवव्रत ने इसे स्वीकारा नहीं,
मेरी प्रतिज्ञा का क्या आपको पता नही।
मैं तो इस जन्म में विवाह नहीं करुंगा,।
तब सत्यवती ने एक उपाय सुझाया,
विवाह से पूर्व एक पुत्र मुझे हुआ है,
क्या हम उसको बुला लें,
और वही विवाह करके हमें युवराज दिला दे,।
देवव्रत ने इसे स्वीकार कर लिया,
और सत्यवती ने अपने पुत्र वेद व्यास को बुला लिया।
वेद व्यास ने मां से बुलवाने कारण पुछवाया,
माता ने फिर उसके सम्मुख अपना उद्देश्य बताया,।
तब उन्होंने दोनों रानियों को अपने सम्मुख बुलवाया,
रानियों को यह अहसास नहीं था,
वेद व्यास को कभी देखा भी नहीं था।
उनके रुप को देखते हुए रानियां सकुचाई,
और पुत्र कामना में असफल दी दिखाई।
वेद व्यास ने मां को बताया,
उद्देश्य तुम्हरा पुरा नही हो पाया।
दोनों रानियों को पुत्र तो मिल जाएंगे,
किन्तु विकारों से मुक्त नहीं हो पाएंगे।
तब एक शालीनता वाली दासी को बुलाया,
और एक पुत्र उसके भी आया।
बड़ा पुत्र नेत्र हीन हो कर आया,
दूसरे पुत्र ने यौन रोग था पाया।
तीसरा पुत्र तो सब गुण संपन्न हुआ था,
किन्तु वह तो दासी से पैदा हुआ था।
युवा होने पर इन्हें राज पाट सौंपना था,
धृतराष्ट्र नेत्र हीनता के कारण पिछड़ गया,
पांडू को सिंहासन मिल गया था।
धृतराष्ट्र को यह पसंद नहीं आया था,
किन्तु वह तब कुछ कह नहीं पाया था।
लेकिन हस्तिनापुर को अभी कितने और जख्म खाना था,
कुछ अंतराल के बाद पांडू का जाना हो गया,
और धृतराष्ट्र को सिंहासन पर बैठा दिया गया।
अब धृतराष्ट्र की महत्त्वाकांक्षा जाग उठी,
उधर शकुनि की भी राज पाट में मंत्रणा जंग उठी।
उसने अपने भानजे को युवराज बनाने का बीड़ा उठाया,
और दुर्योधन को राज़ पाठ का मोह दिखाया।
इधर वह धृतराष्ट्र को उकसा रहा था,
उधर दुर्योधन को पाठ पढ़ा रहा था।
किन्तु यहां पर विदुर ने नीति का ज्ञान पढ़ाया,
और युधिष्ठिर को युवराज बनवाया।
इस आघात को शकुनि, दुर्योधन ने सह पाए,
और धृतराष्ट्र से विरोध जताए ।
धृतराष्ट्र ने अपनी मजबूरी जताई,
तो शकुनि ने एक चाल चलाई।
लाक्षागृह का निर्माण कराया,
और पांडवों को वहां भिजवाया।
विदुर को यह पसंद नहीं आया,
उसने इस पर अपना दिमाग चलाया।
उनके मन में एक संशय बना हुआ था,
इस लिए उन्होंने युधिष्ठिर से यह कहा था।
जंगल में जब आग लग जाए,
तो उसमें कौन प्राणी बच पाए।
और अपने एक कारिन्दे को वहां भेज दिया,
और उससे सुंरग बनाने को कह दिया।
लाक्षागृह में आग लग गई,
किन्तु पांडवों की जान बच गई।
लेकिन हस्तिनापुर में हाहाकार मच गया था,
देवव्रत तब तक पितामह बन गया था।
उसने तो स्वयं को एकांत में ला दिया था,
समय आगे बढ़ता जा रहा था,
इधर पांडवों ने वनों में प्रवास किया था।
इसी मध्य एक बात दी सुनाई,
पांचाल नरेश के राज में स्वयम्बर की सूचना पाई।
पांडव भी इसे देखने वहां चले आए,
द्रौपद ने अपनी शर्त बताई।
जो मछली की आंख को भेदेगा,
वहीं द्रौपदी से विवाह करेगा।
अन्य लोगों ने इस प्रतिज्ञा को नहीं पुरा कर पाए,
तब अर्जुन ने धनुष बाण उठाए,
और मछली की आंख को भेद दिया,
और द्रौपदी से विवाह किया।
्त्ज्या्त्ज्या्त्ज््त्ज्या्त्ज्या्त्ज्त्ज्या्त्ज्या्त्ज््त्ज्या्त्ज्या्त् क्रमस जारी है अगले भाग में।