देवदूत
रक्त से लथपथ पड़ा वह युवक,
देख रहा था अपने चारों ओर घिरे लोगों को-
कातर दृष्टि से।
उसके पास बैठी युवती कर रही थी गुहार-
मदद के लिये।
लोग कर रहे थे तरह तरह की बातें।
उस युवक की कातर दृष्टि का,
उस युवती की गुहार का-
किसी पर नहीं पड़ रहा था कोई प्रभाव।
कुछ लोग अपने वस्त्रों पर रक्त के धब्बे लगने के भय से,
कुछ अन्य कारणों से नहीं हो रहे थे उन्मुख-
उनकी मदद के लिये।
यह घोर असम्वेदना ही तो थी।
एक आवारा सा युवक चीर कर लोगों की भीड़-
जा पहुँचा उन दोनों के पास।
उसने देखा लोगों को जलती नज़र से,
धिक्कारते हुये उन्हें उनकी संवेदनहीनता के लिये–
नफरत से थूक दिया जमीन पर,
अकेले ही उसने लाद लिया उस घायल युवक को अपने कन्धों पर-
और ले चला अस्पताल की ओर।
वह युवती भर उठी कृतज्ञता से-
और दौड़ चली उसके पीछे।
वह आवारा सा युवक उसे दिखाई दे रहा था-
देव दूत सा।
जयन्ती प्रसाद शर्मा