देर तक
देर तक
नदियों को पीकर
पर्वतों को लांघकर
कौन बहा है देर तक।
वादियों के मध्य ये
जिंदगी की रेत पर
कौन चला है देर तक।
पग-पग नापते धरती
अंबर से करते ठिठोली
कौन हंसा है देर तक।।
समय के हस्तकोष में
मकरंद सदृश रश्मियां
कौन सजा है देर तक।।
पूर्णमासी निंद्रा
अमावस्या जीवन
कौन तपा है देर तक।।
-सूर्यकान्त द्विवेदी