देती अगर है दर्द सियासत कभी कभी।
गज़ल
221…….2121…….1221…….212
देती अगर है दर्द सियासत कभी कभी।
डटकर करेंगे हम भी बगावत कभी कभी।
मज़दूर औ किसान के खातिर कभी कभी।
करनी पड़े करेंगे खिलाफत कभी कभी।
थोड़ा सा प्यार दे के कभी दर्द बांट लो,
रखिए हुजूर ऐसी भी आदत कभी कभी।
मस्जिद भी है मँदिर भी है, खुद में ही खोज लो,
कर लो परमपिता की, इबादत कभी कभी,
आँखें मिलीं थी राह में दिल में उतर गई,
यादाती मुझको आज भी सूरत कभी कभी।
क्यों दूसरे ही आपके खातिर करेंगे सब,
आखिर उठाएँ आप भी, जहमत कभी कभी।
प्रेमी हैं हम तो रोज, मुहब्बत करेंगे यार,
तू भी तो करके देख ले उल्फत कभी कभी।
……..✍️ प्रेमी