देख वसीयत बिटिया खड़ी मुसकाय
देख वसीयत बिटिया खड़ी मुसकाय
सेवा मुझको ही करनी
कैसे दु बिसराय
संस्कार मिला आपकी
कैसे दूं इसे बिखराए
घर घर की बात ये
घर घर न हम बगराए …
सबकुछ कर लूंगी भइया
बस तीजा लियो लिवाय
कैसी दुनिया,कैसा कलयुग,
क्यों मानवता गिराए
पर बिटिया मौन,हंसकर
अपना कर्तव्य निभाए …
“पंखुरी “के पुष्प(कविता) सदा
संवेदना दर्शाए ..
पढ़कर जिसको अश्रु सहसा दृग कोरो से बह जाय ……