देख लेना एक दिन
देख लेना एक दिन
मरुभूमि में पौधे उगेंगे ।
सप्त रंगी पादपों में
कुसुम कंचन से खिलेंगे ।।
वसुंधरा भी ओढ़ लेगी
हरित चादर मखमली सी ।
शुष्क निर्झर एक दिन
फिर नीर लेकर के बहेंगे ।।
पंछियों के कलरवो का
शोर गूंजेगा यहाँ फिर ।
लताओं के पुञ्ज तरु की
डालियाँ फिर से गहेंगे ।।
फलों से लद जाएँगी
शाखें नमित हो जायेंगी ।
स्नेह के माहौल में न
जीव भी आतप सहेंगे ।।
प्रकृति का चक्र परिवर्तन
लिए ही दौड़ता है ।
सुख के दिन जब न रहे
तो दुःख के कैंसे रहेंगे ।।