देख लीं
लोभ में आन्हर भइल बाटे जमाना देख लीं।
लोग चाहत बा दहेजे में खजाना देख लीं।
ऑकसीजन के बिना तड़पत मरल हऽ लोग सब,
मौत भी खोजत हवे नीमन बहाना देख लीं।
अश्क घड़ियाली बहावे झूठ बोले झूठ पर,
रंग गिरगिट के नियन बदलत दिवाना देख लीं।
ध्यान भटकावल समस्या से बनल फैसन इहाँ,
बे लगन गावत हई आजी सहाना देख लीं।
ना गइल हउअन कमाए काम ना कतहीं मिलल,
‘सूर्य’ के मेहरि न देली आज खाना देख लीं।
(स्वरचित मौलिक)
#सन्तोष_कुमार_विश्वकर्मा_सूर्य
तुर्कपट्टी, देवरिया, (उ.प्र.)
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