देख रही हूँ …
देख रही हूँ खुल रहा है धीरे धीरे ये शहर ,
सुनहरी होने लगी है धीरे धीरे ये सहर !
चलों कहीं दूर निकलते हैं
तेज़ बरखा में भीगते हैं
उस सौंधी सौंधी सी माटी की
ख़ुशबू में जी लेते हैं ……
देख रही हूँ खुल रहा है धीरे धीरे ये शहर ,
सुनहरी होने लगी है धीरे धीरे ये सहर !
चलों कहीं दूर निकलते हैं
तेज़ बरखा में भीगते हैं
उस सौंधी सौंधी सी माटी की
ख़ुशबू में जी लेते हैं ……