देख तूफ़ान डर न जाए कहीं
देख तूफ़ान डर न जाए कहीं
रास्ते में ठहर न जाए कहीं
रहनुमा छोड़कर गया शायद
कारवां अब बिखर न जाए कहीं
सिर्फ़ कमियाँ निकालने में लगे
वक़्त सारा गुज़र न जाए कहीं
संग के साथ रहते – रहते ही
दिल का अहसास मर न जाए कहीं
देख मत उसकी आंख में इतना
फ़िर से दरिया उतर न जाए कहीं
ज़ख़्म छोटा है वार तिरछा है
दर्द सारा उभर न जाए कहीं
छोड़कर जा रहा है मर्ज़ी से
रेज़ा – रेज़ा बिखर न जाए कहीं
छीन लो आइना अभी उससे
मुझसे ज़्यादा संवर न जाए कहीं
उसको ‘आनन्द’ कुछ नहीं कहना
लौटकर आज घर न जाए कहीं
– डॉ आनन्द किशोर