देख चुनावी होली प्यारे
देख चुनावी होली प्यारे,
जोर-शोर से जारी।
किस-किस ने किस-किस के जाने,
कैसा रंग लगाया।
खड़ा हुआ दर्पण के आगे,
कुछ भी समझ न आया।
छूट रही है सभी ओर से,
वादों की पिचकारी ।
देख चुनावी होली प्यारे,
जोर-शोर से जारी।
जो भी जैसा देखे अवसर,
बदल रहा है पाला।
तन पर ओढ़े चोला उजला,
लेकिन मन है काला।
बीच दंत के जिह्वा जैसी,
अब कुर्सी बेचारी।
देख चुनावी होली प्यारे,
जोर-शोर से जारी।
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– राजीव ‘प्रखर’
मुरादाबाद (उ० प्र०)