देख चाँद गगन का
देख चॉद गगन से मुझे यूँ कहने लगा
इशारे इशारों में ही मुझे बुलाने लगा
आ जाओ अब छोड़ कर धरती तुम
कह कर चाँद इतना घूरने यूँ ही लगा
स्वप्न मेरे पानी के बुलबुलें जैसे ही हैं
तेरी नैनों के तीर से घायल हो जाते है
मेरे साथ तारों के बीच जा छुपा चाँद
रूप आज चाँद से मेरा निखर गया है
डॉ मधु त्रिवेदी