देख के देखती सी रहती है
ज़िन्दगी क्यों बुझी सी रहती है
आँख में कुछ नमी सी रहती है
ख़्यालों के आँगन में कहीं गुम सी
ज़िन्दगी अजनबी सी रहती है
बेवफ़ा ज़िन्दगी में होके भी
बेवफ़ा बे-दिली सी रहती है
आह दिल की मेरी भी सुन लेती
देख के देखती सी रहती है
कुछ खुला सा है मेरे भी दिल में
रौशनी बाँटती सी रहती है
ज़िन्दगी के सवाल हल करते
ज़िन्दगी यक-फनी सी रहती है
सोंच का फ़र्क होता है आकिब’
दिल में तो तिश्नगी सी रहती है
✍️आकिब जावेद