देखो, फिर आई है ‘बाढ़’…
देखो, फिर आई है ‘बाढ़’…
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देखो, फिर आई है ‘बाढ़’;
आखिर क्या करती ये सरकार,
सिर्फ लूट-खसोट मचती हर-बार,
देखो, फिर आई है ‘बाढ़’;
हवाई सर्वेक्षण का लेते सदा मजा,
पीड़ितों को मिलती है,सिर्फ सजा;
नहीं रोक पाते ये पानी तो ,
क्यों नही, अपनी गद्दी डूबाते ‘बाढ़’ में;
आखिर कब तक आयेगी,
‘बाढ़’ किसी के घर-बार में,
देखो, फिर आई है ‘बाढ़’;
शायद, ‘बाढ़’ आते नही; लाए जाते;
‘बाढ़’ आने की खबर सुनकर,
तब तो विभागी नेता और अफसर,
मंद-मंद मुस्कुराते।
क्या, सरकार हैं इतनी नादान,
सालों से नहीं होता ‘बाढ़’ का निदान,
किस बात की निश्चय और योजना बनाते,
जब बाढ़ हर, साल आ ही जाते;
देखो, फिर आई है ‘बाढ़’;
सड़के बंद हो या कोई रेल,
जनता तो, लेगी सब झेल;
सालों से चलता आ रहा ये खेल,
सिर्फ चना और चूरा बाटेंगे,
पानी में, मलाई सब काटेंगे।
देखो, फिर आई है ‘बाढ़’;
देखो,…..
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….✍️पंकज कर्ण
……..कटिहार।।