देखो इनका रोना धोना!
रोत हुए आते हैं जग में,
रुला कर चले जाते हैं,
ये ही है जीवन मरण का चक्र,
कौन इससे बच पाते हैं!
देकर ईश्वर ने हमको काया,
मोह माया में ऐसा उलझाया,
मोह माया के इस बंधन से,
है कौन भला जो बच पाया!
पर ऐसे भी लोग हुए दुनिया में,
जो दूसरों के लिए ही जीए हैं,
खुद के जीवन से ज्यादा,
दूसरों की सेवा कीए हैं!
वो भी कैसे लोग हुए,
जो दूसरों के लिए बलिदान हुए,
ये भी कैसे लोग हुए हैं,
जो अपने कष्टों पर रो रहे!
यदि मनचाहा मिल गया तो,
उसको अपना हक मान लिया,
गर फिसल गया जो हाथ से,
तो लुटते हुए उसे जता रहे!
रो रो कर वह बता रहे हैं,
लुट लिया मेरा आशियाना,
देश दुनिया को दिखा रहे,
सहानुभूति का करके बहाना!
कितनों के हकों पर डाका डाला,
कितनों के मुंह का छिना निवाला,
दूसरों के दुःख दर्द से खुशियां बटोरी,
अपनी पीड़ा पर नीर बहाते,
गिरगिट की तरह रुप रंग बदलते,
नैनो से हैं आंसू छलकाते!
अपने हितों की ही सोचते रहे सदा,
दूसरों के हकों को निचोड़ दिया,
नकाब लगा कर स्वयं को परोशा,
देते रहे दूसरों को धोखा!
जब जब चाहा अपना हित साधा,
दूसरों को खड़ी करते रहे बाधा,
खुद को पाते रहे सुख सुविधा,
यही इनका उद्देश्य रहा!
नौजवान बेरोजगार रहे,
कितनों के रोजगार छीन गये,
पर उनकी कौन चिंता करे!
विपदा की इस घड़ी में जिन्हें,
नसीब नहीं हुआ खाना जिन्हें,
कितनों ने बिना उपचार के दम तोड दिया,
कितनों से अपनों का साया छूट गया !
कितनों को नहीं नसीब हुआ अपनों का अंतिम दर्शन,
तब भी नहीं खोया उन्होंने अपना पन,
अपने जज्बातों को अपनी पीड़ा बना कर नहीं परोशा,
अपनों के लिए तब भी संघर्ष करते हुए दिखा,
जो मिल गया उसी में गुजारा किया,
नहीं किसी के हक की ओर इशारा किया!
लेकिन जैसे ही इनकी चौधराहट गई छीन,
मासूमियत लिए घुम रहे बनके दीन हीन,
आंखों में आंसुओ की बरसात लिए,
ये सबके सामने हैं रो दिए!
अब तलाश रहे हैं नया आसियाना,
मिल जाए कोई नया ठिकाना,
बहुरुपिए बन कर आ रहे हैं,
झूठी कसमें खा रहे हैं,
फिर धोखा देने आ रहे हैं!
यह फिर से पा लेंगे अपना मुकाम,
यह फिर से बन जाएंगे खासमखास,
हम तो आदमी ही आम हैं,आम ही रहेंगे,
हम कर भी क्या सकेंगें!
हम हैं ही अभिशप्त,
देखने को इनके करतब,
वाह रे नेता जी क्या किस्मत पाए हो,
तुम किस मिट्टी के बन कर आए हो,
अपनी और अपनों की चिंता में सीमटे हुए रहते हो,
बोलो भी अब क्या कहते हो!!
हमें तो अपने हालात पर भी रोने का मौका नहीं आया,
पर ऐ रोने वालों, तुम्हें किस किस बात पर रोना नहीं आया ?