आज वतन को फिर से प्यारे
वर्तमान परिपेक्ष्य में साहित्य मनीषियों के समक्ष सादर संप्रेषित एक नवगीत ?????????
आज वतन को फिर से प्यारे,नेता जी की हुंकार मिले।
वीर भगत सिंह जैसी वाणी, दोधारी ही तलवार मिले।
समय नहीं गांधी का प्यारे।
बदल गये पैमाने सारे।
और अहिंसा की अब बोली,
नहीं पडौसी समझें म्हारे।।
टूटे हैं अब सभी सिलसिले।
आज वतन को फिर से प्यारे,नेता जी की हुंकार मिले।
खून उबलता तो है लेकिन,
गर्मी भी हो मानव खूं में।
नहीं दीखता चन्द्र शेखर
सा बलिदानी भारत भू में।
जिसकी इक पिस्टल से केवल
अंग्रेजों के भी पांव हिले।
आज वतन को फिर से प्यारे,नेता जी की हुंकार मिले।।
चीन पाक की क्या हिम्मत है,
देखें जो आंख उठाकर भी।
आंख फोड़ देंगे पल भर में,
दुश्मन के घर अब जाकर भी।
सेना सबल सशक्त हमारी,
बस एक बार आदेश मिले।
आज वतन को फिर से प्यारे नेता जी की हुंकार मिले।
@स्वरचित व मौलिक
? अटल मुरादाबादी?