देखा है मैंने
03/01/2021
रविवार को सृजित की गयी रचना
देखा है मैने उसे
टूटने की हद तक चाहते
डूबने तक प्यार में चाहते
प्यार के लिए मचलते तड़पते…..।
देखा है मैने उसे..
तूलिका से कैनवास पर
दर्द को उकेरते,सँभालते
कागज कलम पर बिखेरते…
देखा है मैंने उसे
जिम्मेदारियों के बीच
पत्नी संग बतियाते
बच्चों संग खिलखिलाते।
देखा है मैंने उसे ..
अक्सर टूट कर बिखरते
पल पल खुद ही निखरते
और फिर समर्पित होते ….।
देखा है मैने उसे
कलपुर्जों से खेलते
जिम्मेदारी को ओढ़ते
कर्म के लिये निष्ठा बोते ….
देखा है मैने उसे
रिश्ते निभाते
घर सँभालते
घुटन में बिखरते।
हाँ देखा है मैंने उसे
मनोरमा जैन ‘पाखी’