देखा जो हुस्ने यार तो दिल भी मचल गया।
ग़ज़ल
काफ़िया- अल की बंदिश
रद़ीफ- गया
2212…….1211…….2212…….12
देखा जो हुस्ने यार तो दिल भी मचल गया।
मैं गिरते गिरते प्यार में कैसे सॅंभल गया।
घायल हुआ था प्यार में दिल जां जिगर मेरा,
पाया तो दर्द प्यार में, पर मन बहल गया।
हुस्न-ओ-अदा भी ज़ाम से, कमतर नहीं होती,
जिसने पिया वो ज़ाम, वो पीकर फिसल गया।
ये हुस्न इश्क जो भी है, ये बंदगी भी है,
जिसने खुदा से कर लिया आगे निकल गया।
प्रेमी जो प्यार बांटते, दुनियां को आज भी,
इंसान वो तो प्यार के, सांचे में ढल गया।
………✍️ प्रेमी
स्वरचित और मौलिक।