देखा जब भी पलकें उढ़ाकर
देखा जब भी पलकें उढ़ाकर, लगा तुम साथ हो….
पर्दा हटाकर, दरवाजे खोले, पुराने पेड़ को देखा,
पंछी नही अब दाल पर कोई,
सुबह की खुली आँखों में,
अभी नींदे है सोई सोई..
देखा जब भी पलकें उढ़ाकर, लगा तुम साथ हो….
अंगड़ाई तोड़ी, लम्बी सांस ली, देखा सब बिखरा पड़ा है,
मन में भी कोई कमरा सुना है,
ख़ामोशी बैठी है चुप,
आज का दिन भी पड़ा बुनना है,
तनहा शायर हूँ