देखने का नजरिया
हर किसी ने मुझे,
अपने हिसाब से देखा है,
किसी ने सूरते हाल तो
किसी ने सूरते बेहाल देखा है,
किसी ने मुझमें शैतान तो
किसी ने मुझमें खुदा भी देखा है,
जिसने भी मुझको देखा,
हर किसी ने अपनी जरूरत से देखा है..!
किसी ने मुझमे बेटा तो
किसी ने पिता समझकर देखा है
किसी ने मुझे भाई तो
किसी ने आशिक समझकर देखा है
किसी ने मुझे बाजू माना तो
किसी ने पीठ का ख़ंजर भी माना है,
किसी ने मुझे कंधा समझा तो
किसी ने मुझे नमकहराम भी जाना है.!
मैं एक हूँ या हजारों,
लाखों ने मुझमें लाखों को देखा है,
किसी ने मुझे झरोखे से तो,
किसी ने मुझे खुले आसमान के नीचे देखा है.!
बस देखा नहीं तो मैंने खुद को
अपनी जरूरतों से हटकर नहीं देखा है,
जब भी देखा खुद को,
वक्त के आईने में खुदगर्ज होते देखा है.!!
जिसने भी मुझको देखा,
बस आधा अधूरा ही देखा है,
ना किसी ने मुझे पूरा देखा,
ना मैंने खुद को कभी पूरा देखा है.!
किसी ने मुझे जिंदा तो,
किसी ने मुझे मुर्दा भी देखा है,
मेरा महबूब मेरे अंदर है,
और मैंने हमेशा खुद को अकेला देखा है..!!
प्रशांत सोलंकी,
नई दिल्ली- 07