देखते ही उनको ,सोचा ठहर जाऊँ!
ज़िन्दगी की दौड़ में हर पल दौड़ते,कही ठहर जाने की वजह तलाश करते एक दिल की कहानी।
देखते ही उनको सोचा ठहर जाऊँ,कह दूँ उनको अपने दिल के हाल,उनमे ही खोकर रह जाऊ,
पर देख उसकी ख्वाहिश दुनिया को फ़तह कर जाने की,
मैं उन्हें अपने दिल के हाल कह ना सका,
डूबने की थी ख्वाहिश उनमे मेरी पर मैं तो समुंदर में भी उतर ना सका।।
देखते ही उनको सोचा ठहर जाऊँ।
मैं तो एक लब्ज़ भी ना कह सका उसको अपनी अनकही चाहत के पैरवी में,
कह के भी क्या पाते जब ज़िक्र पहले ही था की वो मेहमाँ बनके आए हैं हमारे शहर में,
उनसे तो चार दिन ही उजला था शहर मेरा फिर मेरे शहर को अंधेरो में कहीं गुम छोड़ जाएंगे वो।
अपना बना हमें फिर अकेला कर जाएंगे वो।
देखते ही उनको सोचा ठहर जाऊँ।
सच कहूँ तो जब भी देखता हु उनको तो वो कुछ अपनो से लगते है,
उनसे बिन कुछ कहे ,
बिन कुछ सुने फिर भी वो कुछ सच्चे से लगते है,
कुछ तो अदा है उनमे बिन कहे सबकुछ कह जाने की ,
दिलों को चुराने की तो सबको अपना बनाने की,
पर खता अनजाने में वो ये कर जाते है दिलों को तोड़ जाते है फिर भी सबको अपना बनाते हैं।
देखा उनको तो सोचा ठहर जाऊँ।
कुछ तो बात है उनमे जिसका उनको ख़ुद भी इल्म नहीं हैं,
कुछ तो कहती है उनकी चहकती आँखे जो वो कह के भी नहीं कहते,
कुछ तो पाने की ख्वाहिश में है वो भला यूँही कोई खूबसूरत बला,
इस मासूम खूबसूरत शहर से रुकसत नही होती।
देखा उनको तो सोचा ठहर जाऊँ।
बस एक इल्तज़ा है हमारी,
जब हमे अलविदा कह तुम जहाँ को फ़तह कर लेने को निकलो,
एक नाम मेरे माने हुए एकतरफ़ा रिश्ते को भी दे जाना,
भले ना नाकाबिल हो मोहब्बत को तेरे हम,
पर इश्क़ की दोस्ती में हमारा कोई सानी नही।।
देखा उसको तो सोचा ठहर जाऊँ,कह दु अपने दिल के जज्बात और उसमे ही खोकर रह जाऊँ।
दीपक ‘पटेल’