देखते देखते मंज़र बदल गया
देखते देखते मंज़र बदल गया
धूप भी सिमट गयी
बादलों के आग़ोश में
पता नहीं पहाड़ों के बर्फ़
कब पिघलेंगे
देवदार के पेड़ भी
बर्फ़ की परतों से हैं बोझल
टूटे खिड़कियों से आती
ये सर्द हवा
फटे परदे रोक नहीं पातीं
ना जानें चराग़ की
कपकपाती लौ
कब बुझ जायेगी