देखकर तुम्हें जीने लगे
** देख कर तुम्हें जीने लगे ***
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देख कर हम तुम्हें जीने लगे,
जाम मय के भर भर पीने लगे।
आप भी देखो थोड़ा प्यार से,
जख्म गम के कब से सीने लगे।
इस कदर रहते हो खुद से जुदा,
हंस के विष को भी पीने लगे।
अंजुमन में भी खोये हो कहाँ,
बेवफाई को तुम जीने लगे।
खोलकर मनसीरत क्या है कहे,
हार कर खुद में ही जीने लगे।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)