*देकर ज्ञान गुरुजी हमको जीवन में तुम तार दो*
देकर ज्ञान गुरुजी हमको जीवन में तुम तार दो
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देकर ज्ञान गुरूजी हमको जीवन में तुम तार दो।
दीप जला कर ज्योति से छाया अंधेरा उतार दो।
पहली गुरु मां हमारी जिसने जगत दिखाया है,
उँगली पकड़कर अपनी हमें चलना सिखाया है,
छोटी-छोटी सीख सिखा हमें अच्छे संस्कार दो।
दीप जला कर ज्योति से छाया अंधेरा उतार दो।
गुरु ब्रह्मा ,गुरु विष्णु,गुरु शिव गुरु ही श्याम है,
सदियों से चलता आया गुरु शिक्षा का धाम है,
अंधियारों में डूबी रहती नैया को कर पार दो।
दीप जला कर ज्योति से छाया अंधेरा उतार दो।
गुरु तो तरुवर सा भटकों को राह दिखलाता है,
हीरा जैसे जल कर ज्ञान का प्रकाश फैलाता है,
काँटों की सेज हटा कर फूलों से भरा संसार दो।
दीप जला कर ज्योति से छाया अंधेरा उतार दो।
नभ मे देखो तारे कितने चाँद जैसा सानी नहीं,
चेलें चाहे जैसे भी हो गुरूवर मन बेईमानी नहीं,
हम तो हैँ भोले बालक हम पर कर उपकार दो।
दीप जला कर ज्योति से छाया अंधेरा उतार दो।
मनसीरत वक्त से ज्यादा दे सकता है ज्ञान नहीं,
अनुभव से बढ़कर सिखाने वाला है दीवान नहीं,
शिक्षक भविष्य निर्माता नीर के जैसे निखार दो।
दीप जला कर ज्योति से छाया अंधेरा उतार दो।
देकर ज्ञान गुरु जी हमको जीवन मे तुम तार दो।
दीप जला कर ज्योति से छाया अंधेरा उतार दो।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेडी राओ वाली (कैथल)