दृष्टि
निर्मल गहरी शांत
आँखें तुम्हारी
आकृष्ट करती हैं मुझे
किंतु असमर्थ हो तुम
कि किनारों से आँखों के ही
एक कोमल दृष्टि दे दो मुझे
असमर्थता वास्तव में तुम्हारी नहीं
में अनभिज्ञ नहीं हूँ
मैं भिज्ञ हूँ कि कटाक्ष
तुम्हारे इस कृत्य की
प्रतीक्षा कर रहें हैं
कि कब तुम डालो
एक दृष्टि मुझ पर
फिर व्यंग और प्रताड़ना के
असुर आक्रमण करें तुम पर
मैं भिज्ञ हूँ
कि असमर्थता तुम्हारी नहीं
पर तुम उन्हें समर्थ नहीं करना चाहती
नहीं चाहती तुम
कि तुम्हारे अवयस्क प्रेम पर
वे अश्लीलता के हस्ताक्षर करें
या तुम्हारे प्रेम की परिपक्वता
को अबोध कह अपमानित करें
प्रिय
कितना अच्छा होता
मैं अनभिज्ञ होता
तुम अनभिज्ञ होती
कम से कम वह एक
कोमल दृष्टि तो सुलभ होती
अजय मिश्र