*दृष्टि में बस गई, कैकई-मंथरा (हिंदी गजल)*
दृष्टि में बस गई, कैकई-मंथरा (हिंदी गजल)
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1)
दृष्टि में बस गई, कैकई-मंथरा
राजमहलों के मन में, जहर अब भरा
2)
स्रोत से फल की, पहचान करिए नहीं
कैकई थी कुटिल, उसका बेटा खरा
3)
जिसने अमृत पिया, राम के नाम का
देह तो मर गई पर, नहीं वह मरा
4)
संयमी व्यक्ति जीता है, सौ वर्ष तक
छू नहीं पायेगा, रोग उसको जरा
5)
सत्य का बल ही तो, सिर्फ था साथ में
जो जटायू न रावण से, किंचित डरा
6)
राम का नाम जिस पर, लिखा नील ने
डूब वह कब सका, भारी पत्थर तरा
7)
दो चरण-पादुकाओं ने, बदला जगत
पेड़ मुरझा गया था, हुआ फिर हरा
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रचयिता : रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 99976 15451