दृष्टा
दृष्टा
टीना ने कहा , “ यह है मेरा भाई, टिमोथी ।”
“ ओह , तुम्हारा जुड़वां भाई ?” मैंने हाथ आगे बडाते हुए कहा ।
“ हाँ । और शुक्र है हमारा साथ माँ के गर्भ तक था ।” टिमोथी ने हाथ मिलाते हुए कहा ।
“ हाँ, मैं भी उसके लिए शुक्रगुज़ार हूँ , पर अब नाइजीरिया आए हो तो कुछ दिन शांति से रहो ।” टीना का वाक्य पूरा होते न होते वह मुड़ गया , और लोगों से इस तरह मिलने लगा जैसे सबको जानता हो ।
“ तुम बिल्कुल भाई बहन नहीं लगते ।” मैंने टिमोथी को देखते हुए कहा ॥
“ तुम्हारी नज़र तो उससे हट ही नहीं रही । “ टीना ने हंसते हुए कहा ।
“ हाँ , कितना हैंडसम है , और क्या बोडी लैंग्वेज है , ऐसा लगता है जैसे यहाँ सबकुछ उसीका है , सिर्फ़ कपड़ों में शिकन है , कंधे कितने रिलैक्सड हैं ।”
“ घर से चलते हुए मैंने उसे कहा था कि पार्टी में जा रहे हैं कम से कम कमीज तो स्त्री कर ले , पर उसे तो इस गर्मी में क़मीज़ पहनना ही ज़रूरी नहीं लग रहा था , देखो पैंट की जगह कैसा ढीला ढाला पजामा पहन कर आया है ॥”
मेरी नज़र यकायक टीना पर चली गई, मैचिंग जूते , महँगा पर्स, शिनैल की ख़ुशबू , कानों में तीन कैरट का हीरा ।
देखकर मुझे हंसी आ गई ।
“ क्या हुआ ?” उसने वाईन का घूँट लेते हुए कहा ।
“ कुछ नहीं , बस यही सोच रही थी कि मनुष्य को जितना बाहर से सजाया संवारा जा सकता है , हम सब वह है, हमारे बाल, नाखून , भवें , होंठ , गाल , सब पर ही तो मनुष्य के सभ्य होने की छाप है ।”
वह थोड़ी देर चुप रही , फिर उसने कहा , “ तुम्हें टिमोथी पसंद आयेगा ।”
उस पार्टी के कुछ दिन बाद मैं हिल्टन होटल में थी , दूर से मैंने टिमोथी को देखा , तो उसे हैलो करने के इरादे से उसके पास चली गई ।
“ पहचाना?”
“ कुछ कुछ ।”
“ मैं टीना की सहेली हूँ । “
“ अच्छा ॥ यहाँ कैसे ?”
नाइजीरिया में इमयूनाइजेशन की समस्याओं को लेकर एक कान्फ्रेंस चल रही है , उसी के लिए आई हूँ ।”
“ राष्ट्र संघ की ?”
“ हाँ “
मैंने देखा उसकी आँखों में थोड़ा क्रोध उभर आया है ।
“ क्या हुआ?”
“ हर चीज़ सजाकर रख दी है , अपने बदन से लेकर आदमी की तकलीफ़ तक ।”
मैं उसकी बात से सहमत थी , पर यह स्वीकारना मैंने कभी ज़रूरी नहीं समझा था , और आज उसका यह यूँ ही कह देना मुझे थोड़ा उत्तेजित कर गया ।
उसके बाद मैं उसे जब भी मिलती वह मुझे यू एन कहता , जैसे कह रहा हो , तुम्हारा नाटक मुझे पता है , तुम लोग यदि चाहो तो यह दुनिया रहने लायक़ हो सकती है ।
एक दिन मैंने उसे कहा , “ माना हम सब एक सिस्टम का हिस्सा है , और तुम्हारे हिसाब से चोर हैं , क्योंकि अपनी ज़रूरत से ज़्यादा ले रहे हैं , पर तुम तो कुछ भी नहीं कर रहे , पता नहीं कौन सी यूनिवर्सिटी की ग्रांट लेकर यहाँ आकर नोक सभ्यता की खुदाई कर रहे हो ।”
वह हंस दिया , “ यह बिल्कुल ठीक कहा तुमने, मैं कुछ नहीं कर रहा हूँ । जहां इतनी गरीबी और लूटमार है , वहाँ यह समझने की कोशिश कर रहा हूँ कि मनुष्य यहाँ तक पहुँचा तो पहुँचा कैसे ? तकनीक के साथ उसकी धोखा देने की ताक़त ही तो बड़ी है , भीतर की बेईमानी तो वहीं की वहीं है ।”
मैं चुप हो गई । कुछ देर बाद उसने कहा , “ तुम टीना जैसी नहीं हो , यह अच्छी बात है ।”
टीना के जन्मदिन की पार्टी थी और वह अपने फटे पुराने कपड़ों में सबको हिक़ारत से देख रहा था । केक कटने के समय वह कहीं नज़र नहीं आया , टीना के पति ने अंग्रेज़ी में टोस्ट दिया , फिर देर रात तक हिंदी फ़िल्मी गानों पर डांस होता रहा , बीच में खुली हवा में साँस लेने के लिए मैं थोड़ी देर बाहर आई तो देखा , वह कार की छत पर लेटा आकाश ताक रहा है ॥
मैंने पास आकर कहा ,” यहाँ क्या कर रहे हो ?” उसने मुझे गहराई से देखा और एक गहरे चुंबन के लिए अपनी ओर खींच लिया ,
“ यह क्या था ?” मैंने छोड़े जाने के बाद संभलते हुए कहा ।
“ अच्छा लगा न ?” उसने सहजता से कहा ।
“ मैंने तुम्हें इसके लिए इजाज़त नहीं दी थी ।”
वह ज़ोर से हंस दिया , “ झूठ, तुम कब से मुझसे यह माँग रही थी ॥”
बात सच थी , उसके पास आते ही उसकी आदिम ख़ुशबू से जैसे मैं तंद्रा में खोने लगती थी , फिर भी बिना किसी भूमिका के यूँ हो जाना अजीब था ।
मैं चुपचाप भीतर चली आई, उसके बाद मैं उस पागल भीड़ का हिस्सा नहीं बन सकती थी , अचानक मैं सच देख रही थी , यहाँ दोस्त नहीं थे , यात्री थे , सौंदर्य नहीं था , चमक धमक थी , भोजन नहीं था , दिखावा था , हर कोई अपने आप से भाग रहा था , पर वह भाग कर कहां जा रहा था , वह नहीं जानता था , जैसे पूरी सभ्यता अपने अहंकार की ताक़त से किसी अंधकार में खिंची जा रही हो।
मैं बाहर आ गई, हील के जूते उतारते ही आराम आ गया । कार की छत पर चढ़ने के लिए मैंने उसका हाथ माँगा तो वह नीचे उतर आया । मेरा हाथ पकड़कर पार्किंग के पीछे ले आया , और हम वहीं ज़मीन पर लेट गए ।
“ मुझे आवरण नहीं चाहिए ।” उसने मेरी ओर मुड़ते हुए कहा ।
“ मुझे तुम चाहिये ।” मैंने हंसते हुए कहा ।
“ मैं कोई मिलने की चीज़ नहीं हूँ , मैं बस इस पल में हूँ, और खुद को जी लेना चाहता हूँ ।”
“ तो ठीक है ज़्यादा उलझो मत , बस जी लो , हर झूठ को हटा दो ।
वह पूरी रात बोलता रहा , वह कह रहा था , “ हमने भगवान की दुनिया को ठुकरा कर मनुष्य की दुनिया को अपना लिया है , कुछ लोगों के विचारों को अपना जीवन दर्शन बना लिया है , हम सब बाध्य हैं , उन्हीं को मानने के लिए, मनुष्य स्वतंत्र कहाँ है , वह लगातार स्वयं को दबा रहा है ताकि समाज का हिस्सा बना रह सके , मनुष्य डरा हुआ है , हर घर में तनाव है , हर दिल अकेला है । हमारे ऊपर के जितने भी झूठ हैं , हमारे भीतर के सच हैं । “
“ तो उपाय क्या है ?”
वह हंस दिया , “जानती हो भविष्य क्या है ?”
“ नहीं ?”
“ तकनीक के बल पर कुछ लोग इतने ताकतवर हो जाँयेंगे कि उन्हें हमारी तुम्हारी ज़रूरत नहीं रहेगी, और हम ज़मीन पर समाप्त हो जायेंगे , फिर वह आपस में ताक़त की आज़माइश करेंगे , उसका परिणाम क्या होगा मैं नहीं जानता , हो सकता है उसका परिणाम पृथ्वी पर हर तरह के जीवन का नाश हो , शायद कोई बैक्टीरिया रह जाय ।”
“ यह तो बड़ी भयानक बात है ।”
“ नहीं , इसमें भयानक क्या है , जिस दिन पहली बार मनुष्य ने पत्थर का औज़ार बनाया था , यह यात्रा तभी से आरम्भ हो गई थी ।”
“ तो क्या अब हम अपना रास्ता नहीं बदल सकते ?”
“ नहीं ।”
“ क्यों ?”
“ आसपास नज़र उठाकर देखो क़िस में है वह इच्छाशक्ति ? “
चाँद तारे सब जा चुके थे , सूर्य की लालिमा जादू जगा रही थी । उसने कहा ,
“ कल मैं चला जाऊँगा, एक जगह या एक रिश्ते में मैं ज़्यादा दिन बंधना नहीं चाहता, यह मुझे कमजोर बना देता है , मेरे अंदर कुंठाएँ जन्मने लगती हैं , हर रिश्ता स्वतंत्र रहे , हर कोई अपना हो , हर जगह अपनी हो , मैं ऐसा ही जीना चाहता हू । “
“ ठीक है , तुम जाओ , कल की रात अद्भुत थी , स्वतंत्र ।”
वह चला गया , उसके पास एक झोला भी था या नहीं , याद नहीं ।
….. शशि महाजन