दूसरों के प्रति सहयोग का रवैया अपनाना।
आज मनुष्य परिस्थितियों का गुलाम बन कर अपना जीवन जी रहा है।वह इतना भी नहीं जानता है कि जिस समाज में जी रहा हूं।उसका मेरे जीवन में क्या महत्व है। हमें समाज में किस तरह से
समाज में रहना चाहिए।वह तो अभी भी लकीर का फकीर बना हुआ है।वह समाज को किस दृष्टि से देखता है? उसकी नजरो में
मानव की कीमत कुछ भी नहीं है। क्योंकि वह अपने जीवन में किसी को भी महत्व नहीं देना चाहता है। क्योंकि जब इन्सान अपने आप को समझदार समझने लगे तो वह ! किसी भी इन्सान को महत्व नहीं देता है।यह उसकी मानसिक वृक्रति है।वह चापलूसों के, और धनवानों के चक्कर में पड़ जाता है। और फिर अपनी कीमत को खो देता है।वह ऐसे ही व्यक्तियो को सफल समझने लगता है।वह एक दूसरे का सहयोग कैसे कर सकता है? अगर वह सहयोग करेगा तो भी वह अपना स्वार्थ देखेगा। हम मानव की महत्ता नहीं समझ पाते हैं।एक दूसरे का सहयोग करें और आगे बढ़े यही मानव का सच्चा धर्म है। यही हमारी भावना होनी चाहिए।वह केवल लेना ही जानता है ! देने की भी इच्छा रखना चाहिए। मनुष्य अधूरा ज्ञान लेकर आगे बढ़ना चाहता है।