दूसरों के घरों पर पत्थर चलाना छोंड़ दें
दूसरों के घरों पर पत्थर चलाना छोंड़ दें।
खुद भी या सीसे के अपने घर बनाना छोंड़ दें।।
देवता हो जाएगा पत्थर तो ये उसका नसीब
हम भला क्यों बंदिगी में सर झुकाना छोंड़ दें।
प्यार में हद से गुजरते हैं उन्हें दें हौसला
बेवफाई का दिलों को डर दिखाना छोंड़ दें।
दम लगाकर खुद उड़ें, उनको भी भरने दें उड़ान
खुद पिछड़ जाने के डर से पर जलाना छोंड़ दें।
जिसको जो हासिल यहाँ, वो सब तो है करनी का फल
सोंचकर क्या और कैसे सर खुजाना छोंड़ दें।
इस जमाने में न शायद दाल फिर उनकी गले
सादगी लिपटा के झूँठा गर बहाना छोंड़ दें।।
संजय नारायण