-: {{ दूसरी विदाई }} :-
एक माँ बाप ने अरमानों और दुआओ की माला पिरोई थी,
मंदिर सा पवित्र घोसले से एक बेटी घर मे आई थी ।
बेटी को पालने में कितने रात माँ ने आंखों में काटी थी
उसकी एक हँसी पापा के पूरे जीवन की अमिट कमाई थी ।
पलकों पे रख के पाला था, दहेज के साथ विदा करने के लिए,
उनके शरीर का अंश हो कर भी वो अमानत पराई थी ।
बेटी से जीवन भर का विछोव और दहेज की असनीय चिंता,
उस बाप का दर्द कोई सुनता भी कैसे,आँगन में बज रही जो
शहनाई थी ।
बेटी के सुखमय जीवन की आस में, पगड़ी भी उतर गई,
सब कुछ बिक गया घर से, जो भी उसकी पाई पाई थी ।
नही देखा था किसी ने लड़की के रूप और गुण को ,
शादी नही सौदा था, लड़की नही नोटो से शादी रचाई थी ।
लड़का बेच कर भी, एक बाप शान से खड़ा था,
जिगर का टुकड़ा दे भी, एक बाप ने अपनी नज़र झुकाई थी ।
दुआओ के साथ जिसे विदा किया, उसे अब कौन आशीर्वाद
देता है,
सब पूछ रहे है साथ अपने क्या क्या समान लेकर आई थी।
प्यार का धागा बिना बने ही टूट गया, रोज़ के तानों से ,
कितने बार रौंदे गई, बाप के आत्मसम्मान की जो लड़ाई थी ।
आग की लपटों में एक रात वो चीख के तड़पती रही,
चल दी लालची दुनिया छोड़ के, ये उसकी दूसरी विदाई थी ।
varsha