*दूसरी अपनी काया 【कुंडलिया】*
दूसरी अपनी काया 【कुंडलिया】
■■■■■■■■■■■■■■■■■
मिलती है परिपूर्णता , जीवन में साकार
गोदी में शिशु को दिया ,माँ ने अपना प्यार
माँ ने अपना प्यार ,रूप द्विगुणित हो आया
देख – देख आह्लाद , दूसरी अपनी काया
कहते रवि कविराय ,कली मन की है खिलती
अनुपम यह अनुभूति ,सिर्फ माँ को ही मिलती
■■■■■■■■■■■■■■■■■■■
रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451