दूर संस्कार हुए
****दूर संस्कार हुए****
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जब से एकल परिवार हुए,
दूर सारे ही संस्कार हुए।
दादा – दादी,नाना – नानी,
रिस्ते – नाते व्यापार हुए।
भाई की रही बहन नहीं,
राखी धागे शर्मसार हुए।
भाई भाई के साथ नहीं,
भाईचारे बेपरवाह हुए।
रिश्तों की कसौटी पैसा,
संबंध सारे तार तार हुए।
ससको आजादी चाहिए,
नाजायज तब सुधार हुए।
अब रह गया क्या कहना,
अपने अपने त्योहार हुए।
मनसीरत प्यासा पंछी है,
कूएँ पहुंच से बाहर हुए।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)