दूर मुझसे कभी गया भी नहीं
दूर मुझसे कभी गया भी नहीं
पास लेकिन मेरे रहा भी नहीं
ये तो मंज़िल का है जुनूं उसको
यूं ही तन्हा कभी चला भी नहीं
मेरी ख़ातिर वो आ गया है अब
रास्ते में कहीं रुका भी नहीं
प्यार अपनों से भी करे ज़्यादा
है पराया मगर सगा भी नहीं
बात करता रहा इशारों में
सब कहा है मगर कहा भी नहीं
ख़ूब मिलता रहा वो लोगों से
सबसे इतना मगर घुला भी नहीं
रात-दिन मस्तियों में जीता है
पर वो ख़ाली कभी मिला भी नहीं
चाँदनी रात है मुक़द्दर से
राह में दीप इक जला भी नहीं
है न ‘आनन्द’ प्यार किस्मत में
रब से लेकिन कोई गिला भी नहीं
– डॉ आनन्द किशोर