दूर पंछी नीड़ तेरा
पड़ गया सांझी धूप का घेरा
उड़ पिपासे उड़ जहाँ तक
घेर न लेता तुझे अंधेरा
दूर पंछी नीड़ तेरा।
हाय कैसा क्षण उदास
न कोई वक्त न कोई आस
थके श्लथ हृदय में
एकाकी अनंत प्यास
साथी सिर्फ उदास मन तेरा
दूर पंछी नीड़ तेरा।
सूरज न चंदा न तारे कहीं
न कोई साथी न आसार कहीं
इस महाशून्य में उड़ता रह
प्रतीक्षा करता है नीड़ तेरा
दूर पंछी नीड़ तेरा।
उड़ पिपासे उड़ जहाँ तक
प्यास तेरी साथ दे दे
झड़ रहे तेरे ये पंख पंछी
थके न बस स्पंदन तेरा
दूर पंछी नीड़ तेरा।
नीड़ वही तेरी उड़ान वही
प्यास वही तेरी तृप्ति वही
उड़ पिपासे उड़ जहाँ तक
पंख देते साथ तेरा
दूर पंछी नीड़ तेरा।
-✍श्रीधर.