ठाठ रहे रे
बेशर्म की कलम से
बुंदेली पुट
अरे कछु ने कर रय हैं
सब घिरया के धर रय हैं।।
पुलिया सड़क गिट्टी को पैसा।
ठूंस – ठूंस के भर रय हैं।।
हम गरीब सो हम जानत हैं।
कैसे जी रय मर रय हैं।।
हाथ जोर के फिरे चार दिन।
डरे डरे अब चर रय हैं।।
सही कहो तो आँख तरेरें।
लाल “बेशर्म” पर रय हैं।
विजय बेशर्म
(गाडरवारा ) 9424750038