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13 Mar 2022 · 1 min read

दूर नज़रों से कब

दिख रहा जो, वही अंधेरा है।
दूर नज़रों से कब सवेरा है।।

मैल दिल में कोई नहीं रखना ।
दिल में रब का अगर बसेरा है ॥

छीन लेता है साथ अपनों का ।
वक़्त वो बे’रहम लूटेरा है।

सब मुसाफ़िर हैं एक मंज़िल के।
ये जहां तेरा है और न मेरा है।।

दिख रहा जो, वही अंधेरा है।
दूर नज़रों से कब सवेरा है।।

डाॅ फौज़िया नसीम शाद

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