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20 Jan 2022 · 1 min read

दूर क्षितिज के नीचे

दूर क्षितिज के नीचे जब
सूरज कहीं छिप जाता है
पंक्षीगण चुप हो जाते है
अन्धेरा घना छा जाता है

चांद निकलता तिमिर चीरकर
वह तारों संग रास रचाता है
वीरान सा लगता नीलाम्बर
तब जगमग सा हो जाता है

ऐसे ही कभी जब जीवन मे
अंधेरा जो घना छा जाता है
आशा की जलती किरण कोई
बादल निराशा का छट जाता है

देख दुःखो की बदली अक्सर
निर्बल कोई मन ही घबराता है
यह प्रकृति का नियम अटल है
सुख, दुःखो के बाद ही आता है

स्वरचित- सूर्येन्दु मिश्र

Language: Hindi
1 Like · 1 Comment · 214 Views
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