दूर क्षितिज के नीचे
दूर क्षितिज के नीचे जब
सूरज कहीं छिप जाता है
पंक्षीगण चुप हो जाते है
अन्धेरा घना छा जाता है
चांद निकलता तिमिर चीरकर
वह तारों संग रास रचाता है
वीरान सा लगता नीलाम्बर
तब जगमग सा हो जाता है
ऐसे ही कभी जब जीवन मे
अंधेरा जो घना छा जाता है
आशा की जलती किरण कोई
बादल निराशा का छट जाता है
देख दुःखो की बदली अक्सर
निर्बल कोई मन ही घबराता है
यह प्रकृति का नियम अटल है
सुख, दुःखो के बाद ही आता है
स्वरचित- सूर्येन्दु मिश्र