दूर करो माँ सघन अंधेरा
दूर करो माँ सघन अंधेरा,
जाने आया किस काल द्वार से,
महाप्रलय, अट्टहास- अहंकार से,
विध्वंस नृत्य किया घनघोर,
क्रंदन, विलाप करता नित फेरा,
दूर करो माँ सघन अंधेरा ।
विलख रही है सूखी हड्डी,
निस्तेज हुई काया की मिट्टी,
धधक रही विनाश की भट्टी,
विकराल रोग धरती का उर उकेरा,
दूर करो माँ सघन अंधेरा ।
गिद्ध श्रृंगाल उत्सव को आतुर,
रुधिर, मांस, चर्म भक्षण को व्याकुल,
विकट रात्रि का मुख है खादुर,
मृत्यु का यहाँ-वहाँ रैन-बसेरा,
दूर करो माँ सघन अंधेरा ।
है गगन अब शब्द मलीन,
धरा भी असहाय नेह विहीन,
प्रकृति के अवयव हो गए दिशाहीन,
है ईश्वर भी किस हेतु मुख फेरा,
दूर करो माँ सघन अंधेरा ।
तू काली है हृदय विशाली,
तू चामुंडा, शोणित पीने वाली,
तू रक्षिका, बन विकराली
है संबल अब बस तेरा,
दूर करो माँ सघन अंधेरा ।
???? उमा झा