दूर अब न रहो
दूर अब न रहो पास आया करो,
फूल बनकर कभी मुस्कुराया करो
जो हवाएं महकती चली आ रही
संदेशा उसी से पठाया करो।
दूर अब न रहो पास आया करो।
सादगी की कुछ बात ही और है,
आंखों में काजल लगाया करो।
स्वर्ण मोती भरे आंख मे है तेरे,
यूँ न आंखो से आंसू बहाया करो।
हवाएं बताती है अदाए तेरी।
बात मे यू ही न घुमाया करो।
मै तो लिखता चलूँ मनोभाव को,
पढ़कर कविता मेरी गुनगुनाया करो।
है समय बहुत कम दूर हो जाए गम,
अब समय को यूँ न व्यर्थ जाया करो।
दूर अब न रहो पास आया करो।।
…✍विन्ध्य प्रकाश मिश्र ‘विप्र’
नरई संग्रामगढ प्रतापगढ उ प्र
Prakashvindhya56@gmail.com