दुष्यंत कुमार के शिष्य
हमें क्या करना था
हम क्या कर रहे हैं
जेहनी तौर पर
सदियों से सड़ रहे हैं…
(१)
लड़ना था देश की
ग़रीबी के ख़िलाफ़
मज़हब के नाम पर
आपस में लड़ रहे हैं…
(२)
यहां किसी पर कोई
फ़र्क ही नहीं पड़ता
कीड़े-मकोड़ों की तरह
लोग मर रहे हैं…
(३)
राजनेता देश को
खोखला करके
काला धन विदेशी
बैंकों में भर रहे हैं…
(४)
जंगल के पेड़ों से
फूलों के बजाए
अबके बरस केवल
शरारे झर रहे हैं…
(५)
ख़ुद को एक दानिश्वर
कहते हुए आज
उफ्फ-हम तो मारे
शर्म के गड़ रहे हैं…
(६)
धर्म और संस्कृति
के नाम पर
कैसे-कैसे लोग
हमारे गले पड़ रहे हैं…
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Shekhar Chandra Mitra
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