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15 May 2023 · 1 min read

दुश्वार के दिन

कितने बचे हैं अब गिन कर दिन दुश्वार के भी,
जिंदा हूं मोहब्बत में भी सब कुछ हार के भी।

निशानियां बाकी है जिस्म पर तुम्हारे नाखूनों के,
और बचा रखा है यादें फरेबी प्यार के भी।

तुम्हारी यादों के नशे आज तलक आंखों में है,
अमां नशीली लग रही है आंखें नशा उतार के भी।

मुद्दतें हुई है रूबरू खुद से भी हुआ नहीं,
काटे नहीं कटते हैं वक्त इंतज़ार के भी।

एक तू हीं बिकने की चीज नहीं है अकेली चंद नोटों पर,
रूख हीं ऐसा हुआ रखा है आजकल यह पता है मुझे बाज़ार के भी।

तेरी तमन्नाओं के लहजे भी उसी तरह थे आंखों में तुम्हारे,
कमबख़्त मैं हीं देख नहीं पाया इश्क का चश्मा उतार के भी।

जाएंगे ये दिन भी गुज़र क़यामत के मेरी महबूबा मेरी बेरूख हम-दम,
लाली जाती हीं हैं ढल एक दिन कुदरत के श्रृंगार के भी।

दोष क्या देगा किस्मत को अमन आजकल,
बदले बदले से मिजाज है जमाने में प्यार के भी।

© –अमन

Language: Hindi
Tag: Poem
324 Views
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