दुश्मन कैसा भी रहे, अच्छा बुरा विचित्र दुश्मन कैसा भी रहे, अच्छा बुरा विचित्र । मिलें न बस मुझको कभी,मुआ दोगला मित्र।। रमेश शर्मा.