दुश्मनों की कमी नहीं जिंदगी में …
दुश्मनों की कमी नहीं है ज़माने में ,
एक ढूंढो हजार मिलेंगे जिंदगानी में ।
इनके लिए बाहर जाने की जरूरत नहीं,
ये दुश्मन मिल जायेंगे अपने घर ही में ।
गैरों की क्या जरूरत खंजर चुभोने वाले ,
जब मिल ही जायेंगे अपने “आज़ीजो ” में।
एक चिंगारी ही तो चाहिए बस !
देखो ! आग लगती है आशियाने में।
गुस्सा जिनकी नाक पर रहता हो ,
लहू बनकर उतर आयेगा आंखों में ।
देखने में मासूम लगता है यूं तो इंसान ,
जरा छेड़के देखो तब्दील होगा शैतान में ।
गुरुर सिर उठाने लगता है जब कभी ,
टकराव होने लगता है फिर इमानों में ।
यहां कौन खुद को गैरों से कम समझता है ,
सभी कोशिश करते है एक दूजे को गिराने में।
ये उलझे उलझे से खयालात की इंतहा,
नकारात्मकता बन घर बनाती है जहन में ।
जुबान दराजी जब हद कर देती है तब फिर ,
आ जाता है असलाह जल्द फिर हाथों में।
खून करके ही दुश्मनी दम लेती है फिर
रह जाता है फिर अफसोस ही जिंदगानी में ।
छोटी सी जिंदगी जीने के लिए ” ए अनु ”
दुश्मनी भुलाकर हर पल जिओ प्यार में।