दुशासन वध
कुरुक्षेत्र की समर भूमि में जब गुरु द्रोण भी मारे गए
तब कुरुओ में भय जागा, और अंगराज गुहारें गए
देख रहे हो सारे नियति का खेल क्या निराला था
ज्येष्ठ पाण्डु भ्राता कुरुओ का नेतृत्व करने वाला था
पन्द्रवे दिन ही कर्ण ने अपना सामर्थ्य सभी को दिखाया
भीमकाय घटोत्कच को अमोक शक्ति से मार गिराया
युद्ध छिड़ा जब सोलहवे दिन, कर्ण कुरुओ को ले बढ़ा
दुर्योधन था संग में उसके, मित्र संग वह सदैव खड़ा
अंगराज ले दुर्योधन को आगे बढ़ता जाता था
पर विचलित था दुशासन कुछ,आगे ना बढ़ पाता था
वह अधम नीच आज कुछ बहका-बहका दीखता था
क्या पता क्या मन में उसके, शायद काल ही उसको दीखता था
शंख बजे और युद्ध छिड़ा, अर्जुन ने कर्ण से रार लिया
धर्मराज भिड़े दुर्योधन से, उसने चुनौती को स्वीकार किया
अधम दुशासन खड़ा अलग था तभी किसी ने नाम पुकारा
‘दुशासन युद्ध कर मुझसे!’, भीमसेन ने ललकारा
गदा युद्ध में भिड़े दोनों और अंत में ये अंजाम हुआ
भीम ने उसको वही पे धर लिया, वो भागने में नाकाम हुआ
केश पकड़ उस नीच के भीम, उसको घसीट ले जाता था
और दुशासन काल देख बस भय से चीखा जाता था
भीमसेन ने ला दुशासन, पांचाली के आगे पटक दिया
और इससे पहले उठ पाता वो, उसकी बाह को झटक लिया
‘देख दुशासन! देख मुझे! मैं तेरा काल बनके आया हूँ
और इस काल को जन्मा तूने है, मैं तेरा ही सरमाया हूँ
जिस दिन तूने भरी सभा में द्रौपदी का मान हरा था
उस दिन अंदर सब सूख गया, दिल में विष मेरे भरा था
उद्देश्य बना ये मेरा की सारे कौरव चुन-चुन मैं मारूंगा
और जिस बांह से तूने पांचाली को खींचा उसको मैं उखाडूँगा’
तेरे रक्त से धुलूँगा दाग, जो वंश पे तूने लगाया है
आज शांत करूँगा जानवर जो मन में तूने जगाया है
पहले तेरी छाती फाड़ू, फिर तेरे भाई की जंघा तोडूंगा
चिंतित मत हो दुशासन, मैं तेरे भाई को भी न छोडूंगा! ‘
ये कह भीम ने उसकी बांह को ऐंठ उखाड़ दिया
और जंगल के व्याग्र के जैसे, उसकी छाती को फाड़ दिया
छाती फटना उस नीच की साँसों को यूँ रोक गया
चीख न निकली उसके मुख से, सीधा मृत्युलोक गया
भीम ने दुशासन के रक्त का खुदको भोग लगाया
और मौन खड़ी पांचाली के केशो को धुलवाया
कबसे बांधे बाल न उसने, कबसे ने एक क्षण विश्राम किया
प्रतिशोध की ज्वाला थी उसमे, पर सदा विवेक से काम लिया
सदा रही मौन सबके समक्ष, पर मन ही मन जलती रही
ज़िंदा थी पर लाश के भाँति, वह अब तक थी चलती रही
रक्त से धुले जो केश तो आज उसे होश आया था
मरा जो अधम नीच तो उसने आज सुकून पाया था
कुछ ही देर में दुर्योधन साथ कर्ण के आया
भाई की ऐसी दशा देख, वो खुद को रोक न पाया
रोता जाता फुट फुटके पर अब क्या ही कर सकता था
भाई को वह खो ही चुका था, सिर्फ विलाप कर सकता था
केशव खड़े थे वही दूर, सब उनने ही करवाया
पहले मान बचाया, फिर हरने वाला मरवाया
शंख बजे युद्ध रुका, पर ये दिन अपनी छाप छोड़ गया
आज युद्ध का एक कारक, इस जगत को छोड़ गया